


बीते कुछ वर्षों में मौसम का मिजाज तेजी से बदल रहा है। कभी अचानक तेज गर्मी, तो कभी वक्त से पहले बारिश और कभी-कभी बर्फीली ठंड—इन घटनाओं ने साबित कर दिया है कि अब मौसम पुराने पैटर्न पर नहीं चलता। यह बदलाव सिर्फ अस्थायी नहीं, बल्कि जलवायु परिवर्तन का संकेत है। अब समय आ गया है कि हम अपने रहन-सहन, खेती, स्वास्थ्य और आपदा प्रबंधन की तैयारी मौसम के नए स्वरूप के अनुसार करें।
कृषि पर असर और किसानों की तैयारी
मौसम की अनिश्चितता का सबसे बड़ा असर किसानों पर पड़ा है। फसलों के लिए जरूरी बारिश कभी समय से पहले आती है तो कभी एकदम देर से। कई बार बेमौसम ओलावृष्टि या तूफान से तैयार फसलें तबाह हो जाती हैं। ऐसे में किसानों को पारंपरिक तरीकों की जगह वैज्ञानिक और मौसम आधारित कृषि अपनानी होगी। सूखा प्रतिरोधी बीज, फसल बीमा और जल संचयन जैसे उपाय अब जरूरी हो गए हैं।
शहरों में बढ़ती स्वास्थ्य समस्याए
शहरी क्षेत्रों में मौसम के बदलाव से गर्मियों में हीट स्ट्रोक, सर्दियों में प्रदूषण जनित बीमारियां और मानसून में डेंगू-चिकनगुनिया जैसी समस्याएं बढ़ गई हैं। बदलते मौसम ने मानव शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को भी चुनौती दी है। अब आवश्यकता है कि घरों में हरियाली बढ़ाई जाए, पानी की बचत की जाए और समय-समय पर स्वास्थ्य की जांच हो। साथ ही, लोगों को पर्यावरण अनुकूल जीवनशैली अपनानी होगी।
आपदा प्रबंधन की नई चुनौतिया
अब प्राकृतिक आपदाएं अनपेक्षित नहीं रहीं। कहीं अचानक बाढ़ आती है, तो कहीं जंगलों में आग लग जाती है। इस नए युग में प्रशासन और आम नागरिक दोनों को आपातकालीन परिस्थितियों के लिए तैयार रहना होगा। स्थानीय स्तर पर चेतावनी तंत्र को मजबूत करना, राहत केंद्रों की तैयारी, और नागरिकों को आपदा प्रबंधन की प्राथमिक ट्रेनिंग देना बेहद जरूरी हो गया है।
शिक्षा और जागरूकता की भूमिका
जलवायु परिवर्तन को लेकर जन-जागरूकता आज की सबसे बड़ी आवश्यकता है। स्कूलों में बच्चों को मौसम और पर्यावरण से जुड़े पाठ पढ़ाए जाने चाहिए। सोशल मीडिया और जनसंचार के माध्यमों से लोगों को पर्यावरणीय बदलावों और उनके प्रभाव के बारे में जागरूक किया जा सकता है। वृक्षारोपण अभियान, स्वच्छता और प्लास्टिक मुक्त जीवन जैसे कदम सामूहिक रूप से प्रभावी हो सकते हैं।
अब वक्त आ गया है कि हम मौसम को हल्के में लेना बंद करें। यह केवल मौसम नहीं, हमारे भविष्य का संकेत है। यदि हमने समय रहते बदलाव नहीं किया, तो इसका खामियाजा आने वाली पीढ़ियों को भुगतना पड़ेगा। हमें व्यक्तिगत, सामाजिक और सरकारी स्तर पर बदलाव लाकर जलवायु के अनुसार जीने की तैयारी करनी ही होगी।